"Contribution of Gijubhai in education setting a milestone" ‘‘शिक्षा की गुणवत्ता के लिए आज भी प्रासंगिक है गिजुभाई के विचार’’
"Contribution of Gijubhai in education setting a milestone"
‘‘शिक्षा की गुणवत्ता के लिए आज भी प्रासंगिक है गिजुभाई के विचार’’
बच्चों को देवता मानने वाले शिक्षाशास्त्री श्री गिजुभाई की जयंती (15 नवम्बर) के अवसर पर सादर नमन ...!!!
गिजुभाई |
"गिजुभाई की कहानियाँ" आपने बचपन में पढ़ी होगी । गिजुभाई जिन्होंने कहानियों के माध्यम से शिक्षा का जो अभिनव प्रयोग किया, आज भी प्रासंगिक है । आज उन्हीं गिजुभाई की जयंती है और Gyan Deep के विशेष आग्रह पर जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान, बड़वानी (म.प्र.) के सेवानिवृत्त व्याख्याता श्री हीरालाल जी देवड़ा ने गिजुभाई के शिक्षा में योगदान पर एक आलेख तैयार किया । जानिए गिजुभाई के बारे में ।
कौन थे गिजुभाई ?
Gijubhai ka Jeevan Parichay - गिजुभाई बधेका अर्थात भारतीय शिक्षा को समर्पित एक ऐसा नाम, जिसने अपने काम से अपने संकल्प को सार्थक किया। गिजुभाई बधेका महान शिक्षाशास्त्री थे। उनका पूरा नाम गिरिजाशंकर भगवानजी बधेका था। अपने प्रयोगों और अनुभव के आधार पर उन्होंने निश्चय किया था कि बच्चों के सही विकास के लिए, उन्हें देश का उत्तम नागरिक बनाने के लिए, किस प्रकार की शिक्षा देनी चाहिए। गिजुभाई प्रत्येक बच्चे की स्वभाविक अच्छाई में गहरा विश्वास करते थे. इसका श्रेय रूसो के प्रभाव को जाता है। रूसो की तरह गिजुभाई भी मानते हैं कि सीखने का प्रमुख सिद्धांत खेल है। बच्चों का जीवन पढ़ाई से बोझिल नहीं होना चाहिए जो उनके लिए अरुचिकर और महत्वहीन है। स्वतंत्रता के माहौल में ही बच्चों की आंतरिक क्षमताओं का स्वतःस्फूर्त विकास संभव हो सकता है। उनको लगता था कि बच्चों को कभी दण्डित नहीं किया जाना चाहिए। आप यह जानकारी Gyan Deep (septadeep.blogspot.com) पर पढ़ रहे हैं ।
भारतीय शिक्षा आयोग 1964-66 यह कहता है कि भारत का भविष्य उसकी शालाओं की कक्षाओं में आकार ले रहा है, तो हमें यह सोचना होगा कि वह भविष्य क्या है, कौन है और कक्षाओं में कैसे आकार ले रहा है ? वर्तमान में देश के स्कूलों की जो हालत है उसको देखकर गिजूभाई की आत्मा खुश तो नहीं होगी। सवाल है कि उनके सपने को कैसे पूरा किया जाए ? उन्होंने अपने जीवन में बच्चों के लिए जो किया वह अभूतपूर्व था। गांधीजी ने उनसे खुद कहा देखो मैं तो बच्चों के साथ इतना काम नहीं कर पाया, जितना तुमने किया।
‘‘शिक्षा में गुणवत्ता होनी चाहिए’’ यह बात आज बार-बार दोहराई जा रही है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का मतलब ऐसी शिक्षा है जो हर बच्चे के काम आये। इसके साथ ही हर बच्चे की क्षमताओं के संपूर्ण विकास में समान रूप से उपयोगी हो। बेहतर शिक्षा हर बच्चे की वैयक्तिक विभिन्नता का ध्यान रखती है। यह हर बच्चे को विभिन्न गतिविधियों, खेल और प्रोजेक्ट वर्क के माध्यम से सीखने का मौका देने वाली भी होती है। आप यह जानकारी Gyan Deep (septadeep.blogspot.com) पर पढ़ रहे हैं ।
क्या किया गिजुभाई ने ?
Life and work of Gijubhai - एक सामान्य से सरकारी स्कूल में गिजुभाई ने जो नवाचार प्रारंभ किया था, वही तो आनंददायी बाल-केंद्रित शिक्षा है। शिक्षा परिवर्तन की सबसे अधिक प्रभावशाली प्रक्रिया है। गिजुभाई कोई नियमित शिक्षक नहीं थे और न उन्होंने शिक्षा का कोई प्रशिक्षण लिया था। गिजूभाई पेशे से तो वकील थे और गांधी जी की तरह कुछ वर्ष दक्षिण अफ्रीका में जाकर रहे। वहां से वापस आने के बाद वह बंबई के हाईकोर्ट में वकालत करने लगे। उसी समय उनके बेटे नरेंद्र भाई का जन्म हुआ और उसके लालन-पालन के लिए वह शिक्षा साहित्य का अध्ययन करने लगे। उस समय 1910-15 में उन्होंने मांटेसरी का बहुत गहन अध्ययन किया और दक्षिणमूर्ति बाल मंदिर (गुजरात) में 20 साल तक बच्चों के साथ में प्रयोग किए। शिक्षक नहीं होते हुए भी उन्होंने अपने प्रयोगों से सभी को चकित किया और शिक्षण एवं शिक्षक दोनों को ही एक नई पहचान दी।
Gijubhai ka Divaswapna - ब्रिटिश भारत में शिक्षा का स्वदेशी और पारंपरिक मॉडल लगभग लुप्त हो चुका था। अंग्रेजी प्रणाली के स्कूल जगह-जगह कायम हो गए थे और शिक्षक सरकारी नौकर के रूप में स्कूलों में शिक्षण कार्य करते थे। बहुत अधिक अंतर नहीं था उस समय के उन स्कूलों में जहाँ, गिजुभाई ने अपने प्रयोग और नवाचार किए थे और आज के उन स्कूलों में जो आज भी वैसे ही हैं जैसे गिजुभाई के जमाने के स्कूल थे। गिजुभाई के समक्ष स्कूल का कोई ऐसा मॉडल या आदर्श नहीं था, जिसे वे अपना लेते। गिजुभाई के समक्ष था एक छोटे से कस्बे का वह सरकारी स्कूल, जिसका भवन न भव्य था, न आकर्षक, न बच्चों के आनंद और किलकारी से गूंजती जगह। जिस स्कूल में गिजुभाई ने मास्टर लक्ष्मीशंकर के रूप में एक प्रयोगी शिक्षक की परिकल्पना की थी, वह स्कूल उदासीनता और उदासी की छाया से ग्रस्त था। । पूरी तरह नीरस स्कूल, जिसमें मनुष्य की सर्वश्रेष्ठ कृति बालक जीवन-निर्माण के संस्कार और व्यवहार सीखने आते थे।
Gijubhai ka Shiksha Darshan - गिजुभाई ने स्कूल के तत्कालीन रूपक को उसकी जड़ता और गतिहीनता से मुक्त किया। प्राथमिक शिक्षा में आनन्द की नई वर्णमाला रची, बाल-गौरव की नई प्रणाली रची और शैक्षिक नवाचारों की वह दिशा एवं दृष्टि रची, जो आज भी प्रासंगिक एवं सार्थक है। एक व्यक्ति जो शिक्षक नहीं था, उसने स्वतंत्र किया था स्कूल को, उसकी जड़ता और गतिहीनता से, उसने मुक्त किया था, और बच्चों को स्कूल के भय से। गिजुभाई से पहले यह किसी ने सोचा भी नहीं था। बच्चे गिजुभाई के लिए बालदेवता थे । गाँधी जी और गिजुभाई दोनों वकील थे, मगर एक ने राष्ट्र की स्वतंत्रता की वकालत की, तो दूसरे ने शिक्षा की वकालत की। गिजूभाई की लंबी-लंबी मूछें थीं, महात्मा गांधी ने उनको मूँछ वाली माँ की उपाधि दी क्यूंकि उनमें बच्चों के प्रति माँ जैसी असीम ममता थी। आप यह जानकारी Gyan Deep (septadeep.blogspot.com) पर पढ़ रहे हैं ।
Gijubhai Badheka Books - गिजुभाई बधेका की पुस्तक ‘दिवास्वप्न’ शैक्षिक प्रयोगों की एक कालजयी पुस्तक है जिसमें प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा किये गए प्रयोगों का संकलन है। इस किताब ने शिक्षा के क्षेत्र से जुड़े कई लोगों को प्रेरित किया है। गिजूभाई बधेका ने 20वीं शताब्दी के पहले दशकों में शिक्षा क्षेत्र में जो प्रयोग किए, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हेतु हमें आज भी उसी दिषा में चलते रहना होगा। गिजूभाई चाहते थे शिक्षा को बाल केंद्रित होने की आवश्यकता है। बदलते समय में हमारे भी लक्ष्य वहीं हैं, जो गिजुभाई के थे। ‘दिवास्वप्न’ यानि दिन में सपने देखना बहुत कठिन काम होता है उन्होंने दिन में सपने देखने की कोशिश की और एक असंभव लगने वाले काम को संभव बनाया।
गिजूभाई बधेका ने बच्चों को केंद्र में रखा। बच्चे को आनंद आता है या नहीं आता है, उनके लिए यही मुख्य बात थी। बच्चों के आनंद के लिए उन्होंने कई प्रयोग किए, वो हारे नहीं और प्रयोग करते रहे। बच्चे सीखें, बच्चे करें, बच्चे खेलें, गिजूभाई का बच्चों के प्रति इतना लगाव था कि वह बच्चों को देवता मानते थे। आज शिक्षक यह सोचते हैं कि हमारा काम तो केवल पाठ्यपुस्तक से है। बच्चे के खुश होने या न होने या स्वच्छ होने या अस्वच्छ होने से हमारा क्या संबंध है ? लेकिन गिजूभाई ने इस नजरिये को बदल दिया और बताया कि बच्चे का स्वस्थ और प्रसन्न रहना शिक्षा का पहला कदम है तथा इसमें शिक्षक की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण एवं विस्तृत है। गिजूभाई के समय गुजरात के अंदर बच्चों की बहुत ज्यादा पिटाई होती थी। ऐसा समझा जाता था कि जब तक छड़ी से मारोगे नहीं तब तक बच्चे सीखेंगे नहीं। गिजूभाई ने माता-पिता और शिक्षकों के लिए कई किताबें लिखीं और इस दृष्टि में बदलाव लाये। बच्चों के प्रति उनके भीतर समर्पण का भाव था। उनका दिल बच्चों जैसा था। आप यह जानकारी Gyan Deep (septadeep.blogspot.com) पर पढ़ रहे हैं ।
उन्होंने देखा होगा कि हमारी जो पूरी शिक्षा पद्धति थी वह बहुत ज्यादा रटंत पद्धति पर आधारित है। परीक्षा है, हाजिरी है, रचना है ये सब एक तरह के प्रतीक हैं। हमारे दिल में श्रद्धा हो या न हो, हम प्रतीकों का बहुत ध्यान रखते हैं जो कि पाखंड है। शिक्षा में आजकल प्रतीकों के ऊपर ज्यादा ध्यान है, इनका सीखने-सिखाने से कोई लेना-देना नहीं है। गिजूभाई की पुस्तक ‘दिवास्वप्न’ के प्रत्येक प्रयोग को हमारे स्कूलों में अपनाया जाए तो हमारी शिक्षा प्रणाली में बहुत सुधार आएगा, क्योंकि उससे गुजरे हुए विद्यार्थी अलग तरह के होंगे। उनकी सोच अलग तरह की होगी। उनका विकास अलग तरह का होगा । गिजुभाई के विचार समय से बहुत आगे थे. वे बहुत आगे की सोच रहे थे।
उनकी माने तो बच्चों को आज भी चर्चाओं के माध्यम से अपनी बात कहने और ज्ञान निर्माण की प्रक्रिया में भागीदारी का मौका देना चाहिए। इस प्रकार संचालित होने वाली कक्षाओं में गतिविधियों और विषयवस्तु में एक विविधता होगी। हर बच्चे को साथ-साथ सीखने के अतिरिक्त खुद के प्रयास से भी सीखने का पर्याप्त मौका मिलेगा और बच्चों का आत्मविश्वास बढेगा। इस तरह बच्चों को भी पूरा सम्मान मिलता है। गांधी ने कहा बहुत लेकिन गांधी ने कार्य दूसरे को सौंपा, गिजूभाई ने कहा कि नहीं मैं तो जिनके लिए बात कह रहा हूँ सीधा उनके पास जाऊंगा, तो वह पहले व्यक्ति थे जो स्वयं बच्चों में चले गए।
आज शिक्षा की गुणवत्ता के लिए हमें भी अपने बच्चों को समझना चाहिए। बच्चे ही देश हैं यह मान लें तो गिजूभाई सार्थक हो जाएंगे। गिजूभाई आज भी प्रासंगिक है। उनके जैसे संवेदनशील अध्यापकों की आवश्यकता हमारे समाज में आज भी है।
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